अगर आप भगवान श्रीकृष्ण के भक्त हैं तो आपको भगवद गीता में उनके श्लोकों को पढ़ना चाहिए | क्योकिं गीता में जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें हैं जिन्हें हमें अमल में लाना जरूरी है और ये हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं | तो आइए जानते हैं भगवद गीता के शक्तिशाली श्लोक कौन से हैं और उनका अर्थ क्या है ? ये सारी जानकारी आप इस आर्टिकल के जरिए प्राप्त कर सकेंगे |
Best Bhagavad Gita Slokas
गीता नाम का अर्थ हिंदू, गीत, कविता, भगवद गीता, दर्शन और नैतिकता पर प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक ग्रंथ की पवित्र पुस्तक से है | जिसका उद्देश्य है – परमात्मा के ज्ञान, आत्मा के ज्ञान और सृष्टि विधान के ज्ञान को स्पष्ट करना है। गीता वास्तव में चरित्र निर्माण का सबसे बड़ा और उत्तम शास्त्र है। जिसके जरिए भगवान कृष्ण ने कहा है कि चरित्र कमल पुष्प समान संसार में रहकर और श्रेष्ठ कर्मों से बनेगा|
भगवद गीता का अर्थ
भगवद का अर्थ है ‘भगवान’ और गीता का अर्थ है ‘गीत’। इसलिए भगवद गीता का अर्थ है भगवान का गीत। मतलब भगवान का गुणगान करने वाला |
भगवद गीता के श्लोक
भगवद गीता हिंदू धर्म का एक पवित्र ग्रंथ है| जिसके 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जो सभी महत्वपूर्ण है| इन्हीं श्लोकों में से एक श्लोक है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन, मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि” | जिसका मतलब है – कर्म ही पूजा है, कर्म ही भक्ति है और कर्म को पूरे मन से करना चाहिए| अगर मनुष्य निस्वार्थ होकर सच्चे मन से कर्म करता है तो भगवान हमेशा उसका साथ देते हैं |
श्रीमद्भागवद गीता के सबसे पहले दो शब्द
धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे’। मतलब – इस जगत में हम जीवन जीते है यह एक युद्ध क्षेत्र है। जीवन हमारा कुरुक्षेत्र भी है और धर्म क्षेत्र भी। यह हमारी कर्मभूमि है, जहाँ हम अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते हैं |
भगवद गीता में 700 श्लोक हैं पर इनमें से कुछ श्लोक ऐसे हैं जो काफी शक्तिशाली और महत्वपूर्ण हैं | पर आज हम आपको भगवद गीता के 15 बेस्ट श्लोक बताएंगे जिनको पढ़कर आपकी जिंदगी बदल जाएगी |
भगवद गीता के शक्तिशाली श्लोक और उनका अर्थ
भगवद गीता के श्लोक का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता | वह सदा सच्चाई का मार्ग अपनाता है और कर्म करने पर ही विशवास रखता है | भगवद गीता के शक्तिशाली श्लोक ऐसे हैं जिससे आपको अपने जीवन में सुख की अनुभूति होगी |
आज हम आपको भगवद गीता के महत्वपूर्ण और शक्तिशाली श्लोक बताने जा रहे हैं जो आपको कभी भी अपने रास्ते से भटकने नहीं देंगे | आइए जानते हैं गीता के शक्तिशाली श्लोक और उनके अर्थ के बारे में –
1. Shloka 2.14 (अध्याय 2, श्लोक 14)
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः ।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत ।।
अर्थ – हे कुन्ती पुत्र सुख और दुःख का अस्थायी रूप से प्रकट होना और समय आने पर उनका लुप्त हो जाना सर्दी और गर्मी की ऋतुओं के प्रकट होने और लुप्त हो जाने के समान ही है। हे भारत के वंशज (अर्जुन) हमें सुख में न तो ज्यादा खुश होना चाहिए और दुःख में न ही दुखी होना चाहिए |
भावार्थ – भगवद गीता के श्लोक 2.14 में हमें जीवन में सुख और दुःख की परिभाषा की जानकारी मिलती है | इस श्लोक के जरिए हमें ये समझाया गया है कि हमें सुख और दुःख में एक जैसा रहना चाहिए क्योकिं ये प्रकृति का नियम है जिसने सुख देखा है उसे दुःख भी देखना पड़ता है | ये सर्दी और गर्मी के बदलते मौसम की तरह ही है |
जिस प्रकार सर्दी और गर्मी आती और जाती है, उसी तरह सुख और दुःख भी प्रकट होते हैं और समय आने पर वे गायब हो जाते हैं। हमें जिंदगी के उतार-चढ़ावों से घबराना नहीं चाहिए उन्हें सहन करना चाहिए | क्योकिं जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है |
2. Shloka 2.21 (अध्याय 2, श्लोक 21)
वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम् ।
कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम् ॥
अर्थ – हे पार्थ, जो इंसान यह जानता है कि आत्मा अविनाशी, अजय, शाश्वत और अपरिवर्तनीय है, वह किसी को कैसे मार सकती है या किसी का विनाश कैसे कर सकती है?
भावार्थ – भगवद गीता के इस श्लोक हमें ये बताया गया है कि आत्मा अविनाशी है। इसे न तो कोई मार सकता है और न ही किसी ने इसे मारा है। क्योकिं शरीर तो नाशवान है और ये जन्म और मृत्यु के बंधन में बंधा है | पर आत्मा इस बंधन से आजाद है | हमें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि मृत्यु सबको आनी है | इससे कोई नहीं बच सकता |
3. Shloka 2.47 (अध्याय 2, श्लोक 47)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थ – आपको अपना कर्तव्य निभाने का अधिकार है, पर आप कर्म के फल के भागीदार नहीं हैं। कभी भी अपने आप को अपनी गतिविधियों के परिणामों का कारण न समझें और अपने कर्तव्य को न करने में कभी भी विमुख न हों।
भावार्थ – भगवद गीता के इस श्लोक में हमें यह बताया गया है कि हमें फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए | हमें केवल अपना कर्म करते रहना चाहिए | हमारे जीवन के जो भी काम हैं या जो भी जिम्मेदारियां हैं उन्हें हमें पूरी ईमानदारी और वफादारी से करना चाहिए | जो इंसान जीवन के दायित्व से भागता है वह कभी भी आगे नहीं बढ़ पाता |
4. Shloka 2.48 (अध्याय 2, श्लोक 48)
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।
अर्थ – हे अर्जुन, योग में स्थिर रहने का प्रयास करो। अपना कर्तव्य निभाओ और सफलता या असफलता के प्रति सभी आसक्तियों का त्याग कर दो। मन को स्थिर रखने की ऐसी समता को योग कहा जाता है।
भावार्थ – इस श्लोक में, भगवान कृष्ण अर्जुन को परिणाम की चिंता किए बिना, मन की समता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करने के बारे में बताते हैं। भगवान कृष्ण वैराग्य के महत्व पर जोर देते हैं और अर्जुन को भविष्य के बारे में चिंता करने या अतीत पर पछतावा करने के बजाय वर्तमान में जीने या उस पर अपना ध्यान केंद्रित करने को कहते हैं |
5. Shloka 3.19 (अध्याय 3, श्लोक 19)
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन् कर्म परं आप्नोति पूरुषः।।
अर्थ – अत: मनुष्य को कर्मों के फल की आसक्ति न रखते हुए कर्त्तव्य समझकर कार्य करना चाहिए, क्योंकि आसक्ति रहित किया गया काम या कर्म मनुष्य को परमप्राप्ति दिलाता है।
भावार्थ – भगवद गीता के इस श्लोक में हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते समय वैराग्य का महत्व बताया गया है कि व्यक्ति को परिणामों की चिंता करने के बजाय अपना कर्तव्य ईमानदारी और समर्पण के साथ करना चाहिए। अगर मनुष्य ऐसा करता है तो वह किसी भी काम को बिना इच्छा के साथ करेगा | ऐसा करने से उसमें निस्वार्थ सेवा का भाव जागृत होगा जिससे उसे परम सुख मिलेगा |
6. Shloka 3.21 (अध्याय 3, श्लोक 21)
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
अर्थ – कोई भी महान व्यक्ति जो भी कार्य करता है, तो सामान्य व्यक्ति उनके नक्शेकदम पर चलते हैं। और वह अनुकरणीय कृत्यों द्वारा जो भी मानक स्थापित करता है, उसका अनुसरण पूरी दुनिया करती है।
भावार्थ – यह श्लोक भगवद गीता का एक शक्तिशाली व महत्वपूर्ण श्लोक है जो हमें सिखाता है कि हमें उन लोगों का अनुसरण करना चाहिए जिन्होंने सफलता प्राप्त करने के लिए दिन-रात मेहनत की है | हमें इस तरह के लोगों के नक्शेकदम पर चलना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए कि वे किस तरह आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं |
7. Shloka 4.38 (अध्याय 4, श्लोक 38)
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति॥
अर्थ – इस मनुष्य लोक में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला निःसन्देह दूसरा कोई साधन नहीं है। जिसका योग भली-भाँति सिद्ध हो गया है, वह उस तत्त्वज्ञान को अवश्य ही स्वयं अपने-आप में पा लेता है।
भावार्थ – भगवद गीता के इस शक्तिशाली श्लोक में हमें यह बताया गया है कि ज्ञान स्वयं को शुद्ध करने का सबसे शक्तिशाली साधन है। ज्ञान के जरिए ही व्यक्ति अज्ञान पर काबू पा सकता है और ज्ञान प्राप्त कर सकता है। योग ज्ञान और आत्म-ज्ञान प्राप्त करने का एक साधन है। योग के अभ्यास से, व्यक्ति परमात्मा के साथ मिल सकता है |
इस श्लोक से हमें यह पता चलता है कि आत्म-प्राप्ति का मार्ग आसान नहीं है क्योंकि इसके लिए समय, कठिन प्रयास और समर्पण की आवश्यकता होती है। आत्म-बोध कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे बाहरी साधनों से प्राप्त किया जा सके। यह खुद की पहचान करने की एक आंतरिक यात्रा है जो स्वयं के भीतर होती है। जिसने इसे प्राप्त किया केवल वे ही परमात्मा के साथ मिल सकते हैं |
8. Shloka 5.16 (अध्याय 5, श्लोक 16)
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः ।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥
अर्थ – परन्तु जिनका वह अज्ञान परमात्मा के तत्व ज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस सच्चिदानन्दघन परमात्मा को प्रकाशित कर देता है|
भावार्थ – सूर्य के उदय होने पर जो वस्तु निर्मित हमें नहीं दिख रही थी, अब सूर्य के प्रकाश के आने से वे दिखने लग जाती है। इसी तरह भगवान् सदैव सूर्य की तरह प्रकाशमय है, परन्तु अज्ञान के कारण हम उस प्रकाश को नहीं देख सकते या अनुभव नहीं कर सकते। जब हम ध्यान के द्वारा अज्ञान का नाश करते हैं तभी हम भगवान को देख सकते हैं या अनुभव कर सकते हैं।
9. Shloka 6.23 (अध्याय 6, श्लोक 23)
तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसंज्ञितम्।
स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा।।
अर्थ – ज्ञात रहे: दुख-संयोग से विच्छेद या अलग करना ही योग है। इस योग का अभ्यास दृढ़ निश्चय के साथ, स्थिर और निश्चल मन से किया जाना चाहिए।
भावार्थ – इस श्लोक में हमें बताया गया है कि हम जीवन में समता के महत्व को सीख सकते हैं और यह कैसे शांतिपूर्ण मन की ओर ले जा सकता है। मतलब मन को स्थिर करके और केंद्रित दिमाग हासिल किया जा सकता है | ऐसा करना आसान नहीं है क्योंकि इसके लिए अभ्यास और समर्पण की आवश्यकता होती है। आंतरिक संतुलन को हम योग और ध्यान के अभ्यास के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं |
10. Shloka 9.34 (अध्याय 9, श्लोक 34)
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।
अर्थ – अपने मन को सदैव मेरे चिन्तन में लगाना, मुझे प्रणाम करना और मेरी पूजा करना। मुझमें पूर्णतया लीन होकर तुम निश्चय ही मेरे पास आ जाओगे |
भवार्थ – भगवद गीता का यह श्लोक हमें सिखाता है कि भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और सभी कार्यों को उन्हें समर्पित करके, हम जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो सकते हैं | अत: व्यक्ति को हमेशा बिना किसी उद्देश्य के भगवान की पूजा करनी चाहिए, और उनके आदेशों का पालन करना चाहिए | ऐसा करने पर, भगवान हमें हर प्रकार के सकंट से बचाते हैं और वे हमेशा हमारे साथ रहते हैं |
11. श्लोक 12.8 (अध्याय 12, श्लोक 8)
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः।।
अर्थ – बस अपना मन मुझ पर यानि भगवान पर केंद्रित करो, और अपनी सारी बुद्धि मुझमें लगाओ। इस प्रकार तुम बिना किसी संदेह के सदैव मुझमें निवास करोगे।
भवार्थ – भगवद गीता का यह श्लोक भगवान को समर्पित करने वाला है | इस श्लोक में कहा गया है कि स्वयं को पूरी तरह से भगवान के प्रति समर्पित करना चाहिए और उनपर अटूट विश्वास रखना चाहिए और अपना ध्यान भगवान के प्रति लगाना चाहिए | ऐसा करने से प्रभु हमारे भीतर निवास करते हैं |
12. Shloka 12.10 (अध्याय 12, श्लोक 10)
अभ्यासे ’प्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव ।
मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि ॥
अर्थ – अगर आप भक्ति-योग के नियमों का अभ्यास नहीं कर सकते, तो मेरे लिए काम करने का प्रयास करें, क्योंकि मेरे लिए काम करने से आप पूर्ण अवस्था में आ जायेंगे।
भवार्थ – इस श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को भक्ति सेवा का अभ्यास जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, भले ही कोई इसमें पूरी तरह से सफल होने में असमर्थ महसूस करता हो। पर भगवान के लिए किए गए कार्य उसे हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करवाते हैं |
13. Shloka 18.46 (अध्याय 18, श्लोक 46)
यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।
अर्थ – भगवान की पूजा करके, जो सभी प्राणियों का स्रोत है और जो सर्वव्यापी है, उसे मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करके पूर्णता प्राप्त कर सकता है।
भवार्थ – हर किसी के जीवन में एक उद्देश्य होता है जिसका उसे पालन करना चाहिए। अपने कर्तव्यों का पालन लगन और निष्ठा से करना चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं | हमें कभी भी दूसरों से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हम अपनी सफलता से दूर हो सकते हैं | हमें अपना ध्यान अपने कार्यों पर कड़ी मेहनत, समर्पण और भक्ति भाव से लगाना चाहिए, तभी हमें जीवन में सफलता मिलेगी |
14. Shloka 18.65 (अध्याय 18, श्लोक 65)
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ॥
अर्थ – सदैव मेरे बारे में सोचो और मेरे भक्त बनो। मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो। इस प्रकार तुम हमेशा मेरे प्रिय बनोगे और मेरे पास आ जाओगे। मैं तुमसे यह वादा करता हूं कि मैं तुम्हारा साथी बन जाऊंगा |
भावार्थ – हमें अपना ध्यान ईश्वर पर केंद्रित करके, उनके प्रति समर्पण करके और भक्ति का अभ्यास करके लगाना चाहिए | ऐसे में हम अपने सच्चे स्वरूप को महसूस करेंगे और ईश्वर के साथ मिलाप करके अपने अंतिम लक्ष्य को प्राप्त कर सकेंगे। मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य ही उच्च आध्यात्मिक चेतना प्राप्त करना और ईश्वर में विलीन होना है।
15. Shloka 18.78 (अध्याय 18, श्लोक 78)
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।
अर्थ – जहाँ पर सभी रहस्यों के गुरु कृष्ण हैं, और जहाँ भी सर्वोच्च धनुर्धर अर्जुन हैं, वहाँ निश्चित रूप से ऐश्वर्य, विजय, असाधारण शक्ति और नैतिकता होगी। यह मेरी सोच है |
भवार्थ – अगर जहां पर कृष्ण जैसे गुरु हैं और अर्जुन जैसे महान धनुर्धर हैं | वहां पर हमेशा सच्चाई की जीत होगी और चारों तरफ गुरु और शिष्य के ऐश्वर्य का गान होगा और एक अलौकिक शक्ति की अनुभूति होगी | इसके साथ ही मनुष्य सही सोच के साथ आगे बढ़ेगा और नैतिकता में विश्वास करेगा |
जीवन में भगवद गीता के श्लोकों का महत्व
हमारे जीवन में भगवद गीता के श्लोकों का विशेष महत्व है –
- कर्म करना – भगवान श्री कृष्ण जी ने भगवत गीता में कर्म करने पर ही जोर दिया है | जो मनुष्य अपना कर्म या काम निस्वार्थ होकर करता है उसे हर क्षेत्र में सफलता मिलती है |
- ईश्वर पर विश्वास करना – जो मनुष्य भगवद गीता के श्लोकों को पढ़ता है और उनका अनुसरण करता है तो उसकी आस्था भगवान के प्रति अटूट हो जाती है |
- सही रास्ते पर चलना – भगवान कृष्ण जी ने अर्जुन को बताया कि सही मार्ग पर चलने वाला मनुष्य अपने रास्ते से भटकता नहीं है |
- समर्पण की भावना – जिस इंसान में समर्पण की भावना है | हमें ऐसे इंसान से सीख लेनी चाहिए |
- खुद की पहचान करना – भगवत गीता के श्लोक मनुष्य को खुद की पहचान करना सिखाते हैं | जिस इंसान ने खुद को जान लिया कि वो कौन है ? और उसे इस धरती पर किस उद्देश्य से भेजा गया है वो इंसान भगवान का प्रिय बन जाता है |
- ध्यान के जरिए प्रभु तक पहुंचना – भगवान कृष्ण जी अर्जुन को कहते हैं कि हे पार्थ मुझे वे लोग प्रिय लगते हैं जो मुझ तक पहुंचना चाहते हैं | प्रभु तक वे लोग ही पहुंच सकते हैं जो अपना ध्यान लगाते हैं और मन को वश में करते हैं |
- भक्ति भाव से कार्य करना – जीवन में मनुष्य अपनी सामर्थ्य के अनुसार हर कार्य करता है | पर भगवान को वे लोग ही प्रिय लगते हैं जो भक्ति भाव से कार्य करते हैं और जिनके मन में कोई छल कपट नहीं होता |
- निर्बल लोगों की सहायता करना – भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि जो लोग निर्बल या असहाय लोगों की मदद करते हैं भगवान उनके साथ हमेशा रहते हैं |
- सही सोच रखना – कृष्ण जी के अनुसार जो मनुष्य सही सोच रखता है वे हमेशा सफल होता है |
- सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत करना – भगवान कृष्ण जी ने अर्जुन को गीता के एक श्लोक में यह भी बताया कि हमें सफलता प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए | हमें उन लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए जो मेहनत करके सफल बने हैं |
भगवद गीता पढ़ने के लाभ
रोजाना भगवद गीता पढ़ने से आपको जो लाभ मिलते हैं वे इस प्रकार हैं –
- मन शांत रहता है – अगर आप नियमित रूप से गीता का पाठ करते हैं तो आपका मन शांत रहता है | मन में उतावलापन या मन में उल्टे सीधे विचार आना धीरे धीरे बंद हो जाते हैं|
- वास्तु दोष का निवारण होता है – गीता का पाठ करने से वास्तु दोष का निवारण भी हो जाता है |
- गृह शांति के साथ साथ ग्रहों की भी शांति होती है – अगर आप रोजाना सच्चे मन से गीता का पाठ करते हैं तो आपके घर में शांति का माहौल बना रहता है और ग्रहों की भी शांति होती है|
- कुंडली में मौजूद किसी भी प्रकार का दोष दूर होता है – अगर आपकी कुंडली में किसी प्रकार का कोई दोष है तो गीता के पाठ करने से वह दूर हो जाता है |
- नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव खत्म होता है – अगर आप गीता का पाठ करते समय हाथ में सूत्र यानी कि धागा बांधते हैं तो इससे नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति होती है – गीता का पाठ करने से आपको मोक्ष की प्राप्ति होती है|
- मृत्यु के बाद पिशाच योनी से मुक्ति मिल जाती है – अगर आप हर रोज गीता का पाठ करते हैं तो आपको मृत्यु के बाद पिशाच योनी से मुक्ति मिलती है |
- बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है – गीता का पाठ करने से आपको कई प्रकार की बीमारियों से भी छुटकारा मिल जाता है |
- घर में मां लक्ष्मी का बास रहता है – अगर आप अपने घर में माता लक्ष्मी का बास चाहते हैं तो आपको गीता का पाठ करना चाहिए |
- शत्रु परास्त होते हैं – शत्रु आपको परास्त करने में हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं | अगर आप उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको नियमित रूप से गीता का पाठ करना चाहिए |
Bhagavad Gita का उद्देश्य
श्रीमद्भागवत गीता भारत के सभी प्राचीन योग और ज्ञान का एक समन्वय है। जिसका मुख्य उद्देश्य है – परमात्मा के ज्ञान, आत्मा के ज्ञान और सृष्टि विधान के ज्ञान को स्पष्ट करना |
भगवद गीता से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Bhagavad गीता के बारे में इस तरह के प्रश्न पूछे जा सकते हैं –
Q1. भगवत गीता क्या है?
भगवद गीता 700 श्लोकों वाला एक हिंदू धर्मग्रंथ है, जिसमें प्राचीन भारत के आध्यात्मिक ज्ञान का शाश्वत संदेश मिलता है |
Q2. भगवत गीता कब लिखी गई?
भगवद गीता की रचना 5,000 साल पहले हुई थी।
Q3. क्या भगवत गीता महाभारत का हिस्सा है?
हाँ भगवद गीता ऐतिहासिक महाकाव्य महाभारत का ही एक हिस्सा है।
Q4. क्या भगवत गीता जीवन बदल सकती है?
भगवद गीता की शिक्षाओं का अध्ययन और अनुसरण करने पर जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं |
Q5. भगवत गीता पढ़ने से क्या लाभ होता है?
रोजाना गीता पढ़ने से शरीर और दिमाग में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है | मन को शांति मिलती है | व्यक्ति को सच और झूठ के बारे में पता चलता है | उसे अच्छे और बुरे की समझ आ जाती है। गीता पढ़ने से व्यक्ति का आत्मबल बढ़ता है और वह अपने कर्तव्य के प्रति सजग हो जाता है।
Q6. Bhagavad Gita में श्रीकृष्ण क्या कहते हैं ?
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य को फल की इच्छा छोड़कर कर्म पर ध्यान देना चाहिए। मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है। इसलिए व्यक्ति को अच्छे कर्म करते रहना चाहिए। श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई नहीं जान सकता |
Q7. भगवद गीता में भगवान कृष्ण किसको संदेश देते हैं ?
भगवद गीता में भगवान कृष्ण जी अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि – हे अर्जुन मोह का त्याग करो | ये संदेश कृष्ण जी अर्जुन को तब देते हैं जब अर्जुन कोरवों से युद्ध कर रहे होते हैं और वे ये देखते हैं कि ये तो मेरे ही सगे संबंधी हैं जिन पर मैं प्रहार करने जा रहा हूँ |
ऐसा विचार जब अर्जुन के मन में आता है तो वे लड़ना छोड़ देते हैं और हताश होकर बैठ जाते हैं | तो उस समय कृष्ण जी अर्जुन को संदेश देते हैं कि – हे पार्थ तुम अपना कर्म करो | तुम्हारा कर्म युद्ध करना है | ये जो तुम्हारे मन में मोह का विचार आया है तुम उसे त्याग दो |
ये थी सारी जानकारी Bhagavad Gita Best Slokas के बारे में |
आशा है आपको इस लेख के जरिए भगवद गीता के शक्तिशाली श्लोक और उनके अर्थ से संबंधित जानकारी पता चल गई होगी |
नमस्कार दोस्तों, मैं विकास कुमार इस वेबसाइट पर आपके लिए नए नए काम के आर्टिकल्स लिखता रहता हूँ | दोस्तों मैं B.A. ग्रेजुएट हूँ और हिंदी में मेरी M.A. है | अगर मेरे द्वारा दी गई जानकारी से किसी को फायदा होता है तो मुझे बहुत ख़ुशी होती है | आशा ये मेरे आर्टिकल्स आपको पसंद आ रहे होंगे |